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SC dismisses plea against Allahabad HC order which said conversion for marriage is unacceptable
नयी दिल्ली। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की उस व्यवस्था के खिलाफ दायर अपील पर विचार करने से बुधवार को इंकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘‘सिर्फ विवाह के लिये ही धर्मान्तरण करना अस्वीकार्य है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने बाद में इस आदेश को अस्वीकार करते हुये निरस्त कर दिया है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि उसे इस मामले में हस्तक्षेप की कोई वजह नजर नहीं आती क्योंकि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बाद में 23 सितंबर का आदेश निरस्त कर दिया है। इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने याचिकाकर्ता आल्दानीश रेन से सवाल किया कि वह उच्च न्यायालय क्यों नहीं जा सकते क्योंकि उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कराने के लिये अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करना उचित विकल्प नहीं है।
रेन ने कहा कि शीर्ष अदालत ही कह सकता है कि उच्च न्यायालय की व्यवस्था सही नहीं है। पीठ ने रेन से कहा कि इस पर ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है और किसी भी ठोस राहत के लिये उच्च न्यायालय जाया जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘अगर उच्च न्यायालय आपको राहत नहीं दे तो आप यहां आ सकते हैं।’’ पीठ ने कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 32 के तहत याचिका नहीं दायर की जा सकती। रेन ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश ने ही उत्तर प्रदेश सरकार को अध्यादेश लाने के लिये प्रेरित किया और अब अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले सैकड़ों लोगों को इसी के कारण रोजाना परेशान किया जा रहा है।
पीठ ने कहा, ‘‘आप स्वयं ही अपना मामला बिगाड़ रहे हैं। आप अनावश्यक रूप से इस पर दबाव दे रहे हैं।’’ उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश के बारे में पूछे जाने पर रेन ने कहा, ‘‘जी हां, उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा है कि यह व्यवस्था सही नहीं है।’’ इस पर पीठ ने कहा, ‘‘एक बार जब खंडपीठ ने इस व्यवस्था को गलत बता दिया तो आप क्यों चाहते हैं कि शीर्ष अदालत भी यही घोषित करे।’’
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