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Home » Rajat Sharma’s Blog: किसान आंदोलन- मोदी को बदनाम करना वामपंथियों का एजेंडा

Rajat Sharma’s Blog: किसान आंदोलन- मोदी को बदनाम करना वामपंथियों का एजेंडा

Press24 News by Press24 News
December 15, 2020
in भारत
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Image Source : Press24 News
Press24 News Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

            सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आपको राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर शाहजहांपुर स्थित किसानों के धरनास्थल का दृश्य दिखाया। यहां पर सीपीआई से जुड़े किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले महिलओं ने 'मोदी, मर जा तू' जैसे आपत्तिजनक नारे लगाए।

ऐसा लगता है कि वामपंथी दल किसानों के आंदोलन को मोदी से टकराव में बदलने की कोशिक में जी-जान से लगे हैं। सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल) और नक्सल समर्थक, सब मिलकर किसानों की आड़ में अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में लगे हैं। सोमवार को आंदोलनकारी किसानों ने एक दिन का उपवास रखा। वे शांति से अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन जब इस तरह की नारेबाजी की तहकीकात की गई तो पता चला इस तरह की भाषा का किसानों ने समर्थन नहीं किया। महिलाएं जिस जगह प्रदर्शन कर रही थीं, वहां मंच पर ऑल इंडिया किसान सभा के बैनर लगे थे। ऑल इंडिया किसान सभा लेफ्ट से जुड़ा है और ये सीपीआई का संगठन है। वामपंथ के प्रति निष्ठा रखने वाले तत्व नफरत और हिंसा का माहौल बनाना चाहते हैं।

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इंडिया टीवी संवाददाता पवन नारा उस धरनास्थल पर पहुंचे जहां आपत्तिजनक नारेबाजी की गई थी। वहां पर धरना प्रदर्शन जारी था और सवाल पूछने पर बताया गया कि वीडियो सही है। वहां मौजूद लोगों ने माना कि मोदी के खिलाफ घटिया नारे लगाए गए थे लेकिन फिर उन्होंने जस्टिफाई किया। उन्होंने कहा कि- इसमें गलत क्या है? यहां पर कुछ महिलाएं ऐसी मिलीं जो ‘मोदी, मर जा तू’ के नारे लगवा रही थीं। पता चला कि ये महिलाएं किसान नहीं हैं और न ही इनका किसानों से कोई मतलब है। नारेबाजी करने वाली जिन महिलाओं के वीडियो को सोशल मीडिया पर किसान बताकर सर्कुलेट किया जा रहा है, असल में वे लेफ्ट के कार्यकर्ता हैं जो किसानों के भेष में आंदोलन को बदनाम करने की नीयत से किसानों के बीच घुसे हैं। इन नारों का किसानों से कोई लेना-देना नहीं था। यहां वही नारे लगाए गए जो ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोग जेएनयू, शाहीन बाग, अलीगढ यूनीवर्सिटी और जामिया मिलिया में लगाते थे। बताया गया कि नारेबाजी में जो महिलाएं दिख रही थी वो आशा वर्कर का एक समूह था। वामदलों से जुड़े इस तरह के ग्रुप रोज आते हैं और चले जाते हैं। लोग बदलते हैं, लेकिन माहौल नहीं बदलता।
अब ये तो साफ है कि इस तरह के खूनी नारे लगाने वाले किसान नहीं हैं। किसान तो अपनी मांगें मनवाने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से धरने पर बैठे हैं। किसानों ने अपनी बात शालीनता से कही है। सर्दी का मौसम है, बारिश भी हुई है, लेकिन किसानों ने हिम्मत नहीं छोड़ी है। तरह-तरह से उकसाया जा रहा है लेकिन किसान भाइयों ने ऐसी कोई बात नहीं की जो शालीनता के दायरे से बाहर हो। लेकिन कभी ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग तो कभी एंटी मोदी मोर्चा चलाने वाले लोग किसानों के इस आंदोलन को टकराव में बदलना चाहते हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने कभी दिल्ली का पानी और दूध-सब्जी बंद करने की बात कही थी, लेकिन किसानों ने इसे नामंजूर कर दिया। ये वही लोग हैं जो इस आंदोलन का कोई हल नहीं चाहते। मैंने आपको इसके सबूत दिखाए हैं। इस साजिश में लेफ्ट समर्थक अकेले नहीं हैं बल्कि भारत विरोधी एक बड़ा खेमा सक्रिय है। नफरत फैलाने की कोशिश सिर्फ देश में नहीं हुई, लंदन से लेकर न्यूयॉर्क तक से ऐसी कई खबरें आईं जहां पाकिस्तान के कहने पर लोग सड़कों पर उतरे और मोदी विरोधी नारे लगाए। कनाडा में तो कई दिनों तक ये दौर चला।
कुछ दिन पहले कनाडा में खालिस्तान का समर्थन करने वालों ने मोदी के खिलाफ इसी तरह के आपत्तिजनक नारे लगाए थे। इन खालिस्तान समर्थकों को हवा मिली थी कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से। ट्रूडो ने वहां बैठे-बैठे दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने ऐसा रुख अपनाया जो किसी राष्ट्राध्यक्ष को शोभा नहीं देता। भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का उनका कोई अधिकार नहीं है। सोमवार को देश के 22 पूर्व राजनयिकों ने खुली चिट्ठी लिखकर जस्टिन ट्रूडो की आलोचना की और कहा कि जस्टिन ट्रूडो का बयान खालिस्तान समर्थक ताकतों को बढ़ावा देने और भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश है। इन लोगों ने भारत विरोधी प्रचार के लिए कनाडा की धरती का उपयोग नहीं करने देने के लिए सख्त चेतावनी दी है।
जस्टिन ट्रूडो को अपने मुल्क की चिंता करनी चाहिए और अपने किसानों की चिंता करनी चाहिए। उन्होंने भारत के किसानों को भड़काने की कोशिश की। भारत सरकार की आलोचना की। उन्होंने ये नहीं देखा हमारे यहां किसान 19 दिन से धरने पर बैठे हैं और सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। हमारे यहां किसानों को पूरी आजादी है, सरकार उनसे लगातार बात कर रही है। लेकिन जस्टिन ट्रूडो अपने देश के किसानों के साथ क्या सलूक करते हैं? कुछ दिन पहले कनाडा में अल्बर्टों प्रांत में किसानों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन की बात कही और कुछ किसान सड़क पर उतर पड़े। दो-चार ट्रैक्टर सड़क के किनारे खड़े किए और जस्टिन ट्रूडो की आलोचना की। इसके बाद ट्रूडो ने पुलिस भेजकर किसानों को गिरफ्तार करवा लिया। किसानों को टॉर्चर किया गया। ट्रूडो अपने देश में प्रदर्शन करने वाले किसानों पर जुल्म करते हैं और हमारे यहां के किसानों से कहते हैं और विरोध प्रदर्शन करो। इसकी वजह सियासी है। दरअसल कनाडा में चुनाव होने वाले हैं। यह बात सब लोग जानते हैं कि कनाडा में खालिस्तान समर्थक जमात ट्रूडो की लिबरल पार्टी का मजबूत ‘वोट बैंक’ है। टूडो इन्हें कनाडा में रहकर भारत के खिलाफ बोलने, प्रदर्शन करने और अपना प्रॉपेगंडा चलाने की इजाजत देते हैं और बदले में खालिस्तानी संगठन जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी की हर तरह से मदद करते हैं।
इधर दिल्ली में किसानों के आंदोलन का आज 20वां दिन है और दिल्ली के बॉर्डर पर किसान भाई धरने पर बैठे हैं। धरनास्थल पर स्वच्छता नहीं है। साफ-सफाई की हालत खराब है। किसान अपना राशन लेकर आए हैं और खाना खुद बना रहे हैं, लंगर चल रहा है। लेकिन बॉर्डर पर न पूरी तरह से शौचालय की व्यवस्था है, न पानी का इंतजाम है, न सफाई है। यहां गंदगी का अंबार है और बीमारियां फैलने का खतरा है। बहुत से किसान भाई बीमार हैं लेकिन उनकी देखभाल का जो इंतजाम है वो नाकाफी है। हमारे संवाददाता भास्कर मिश्रा ने टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से जो रिपोर्ट और तस्वीरें भेजी वे वाकई में परेशान करने वाली हैं। इन तीनों जगह शौचालय की कमी दिखी, साफ सफाई के लिए भी सरकारी इंतजाम न के बराबर थे। जगह-जगह कूड़ा पड़ा हुआ था, पानी जमा था जिससे मच्छर पैदा हो रहे हैं और डेंगू का खतरा बढ़ गया है।
चिंता की बात ये है कि किसानों के आंदोलन में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे हैं। सर्दी के मौसम में कोरोना के संकट के वक्त बुजुर्गों और बच्चों को तो खास एतिहयात बरतने की जरूरत होती है। इसलिए मुझे लगता है कि किसान भले ही अपने नौजवान समर्थकों और अधिक संख्या में बुला लें और अपना विरोध-प्रदर्शन जारी रखें लेकिन कम से कम बुजुर्गों को और बच्चों को वापस भेज दें। क्योंकि बुजुर्गों और बच्चों को खतरा ज्यादा है। दूसरी तरफ दिल्ली और हरियाणा की सरकार से कहना चाहूंगा कि वो सिर्फ जुबानी जमाखर्च न करें। सेवादार होने का ड्रामा न करें। पचास हजार किसानों के बीच पच्चीस मोबाइल टॉयलेट्स से क्या होगा? सफाई का इंतजाम क्यों नहीं है। अस्थाई बाथरूम और शौचालय भी बनाए जा सकते हैं। डॉक्टर्स की तैनाती भी बढ़ाई जा सकती है। मुझे लगता है कि अरविन्द केजरीवाल हों या मनोहर लाल खट्टर, दोनों सरकारें किसान भाइयों की दिक्कतों को देखें और दूर करें।
इसका दूसरा पहलू ये भी है कि जो किसान दिल्ली नहीं आए हैं वो भी परेशानी में हैं क्योंकि किसानों के आंदोलन के कारण उनकी फसल नहीं बिक रही है। गोभी,मटर चुकंदर की फसल जानवर खा रहे हैं। जो छोटे-छोटे, दो-चार बीघे वाले किसान हैं और रोज मंडी में सब्जी बेचकर घऱ चलाते हैं उन किसानों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। चूंकि पंजाब और हरियाणा से सब्जी दिल्ली की मंडी में आती है और दिल्ली में किसान आंदोलन के कारण सब्जी की सप्लाई बंद है इसलिए पंजाब और हरियाणा की मंडियों में किसानों की सब्जी नहीं बिक रही। किसान अपनी फसलों को फेंकने पर मजबूर हैं। इसलिए जो किसान धरने पर बैठे हैं उन्हें इन किसान भाइयों के बारे में सोचना चाहिए। कम से कम दिल्ली में सब्जी की सप्लाई का रास्ता देना चाहिए। इन आंदोलन से सिर्फ किसान ही नहीं, व्यापारी और मजदूर भी परेशान हैं। ये लोग किसानों का समर्थन करते हैं लेकिन किसानों के आंदोलन की वजह से इन लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया है।
किसान संगठनों को तीनों कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए कृषि मंत्री की ओर से दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए, ताकि समाधान का रास्ता निकल सके। उम्मीद करनी चाहिए कि किसान संगठनों के नेता सरकार की बात सुनेंगे और सरकार के पास अपनी बात रखेंगे। पहले ही बहुत समय बीत चुका है और इस तरह रास्ते को रोककर आवागमन ठप करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 14 दिसंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

Disclaimer: This post has been auto-published from an agency/news feed without any modifications to the text and has not been reviewed by an editor.

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