बिहारीलाल बिश्नोई नोखा विधायक ने लिखा पत्र बीकानेर ज़िले के नोखा से बीजेपी विधायक बिहारीलाल बिश्नोई ने प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को खत लिखकर मांग की है कि पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी को फिर से पार्टी में शामिल किया जाए। बिश्नोई ने पत्र लिखा कि पार्टी के पुराने नेताओं, कार्यकर्ताओं को फिर से जोड़ने का प्रयास अच्छा है। देवीसिंह भाटी को फिर भाजपा में शामिल करो उन्होंने यह भी लिखा कि बीकानेर जिले के कार्यकर्ताओं की भावना है कि वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी को फिर से पार्टी परिवार में शामिल किया जाए। राजस्थान पंचायत चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन का जिक्र करते हुए बिश्नोई ने लिखा कि इन चुनावों में भाटी की कमी की वजह से पार्टी को नुकसान हुआ है। भाजपा में भाटी की वापसी से परंपरागत मतदाताओं में पार्टी का आधार मजबूत होगा और कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ेगा। सात बार विधायक रह चुके हैं देवीसिंह भाटी गौरतलब है कि बीकानेर के कोलायत विधानसभा से लगातार 7 बार विद्यायक रह चुके पूर्व मंत्री और दिग्गज नेता देवीसिंह भाटी अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। देवीसिंह भाटी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गुट से आते हैं और बीकाने सांसद व केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के धुर विरोधी माने जाते हैं। लोकसभा चुनाव में किया था अर्जुनराम मेघवाल का विरोध भाटी ने इस बार लोकसभा चुनाव 2019 में अर्जुनराम मेघवाल को टिकट नहीं देने की मांग की थी, लेकिन पार्टी ने अर्जुनराम को तीसरी बार बीकानेर से लोकसभा का टिकट दिया था। जिसके चलते देवी सिंह भाटी ने बीजेपी से इस्तीफा दिया था और अर्जुनराम मेघवाल को हराने के लिए भाटी ने अपने कार्यकर्ताओं को भी मेघवाल के खिलाफ सड़कों पर उतार दिया था। इसके बाद पार्टी विरोधी गतिविधि के चलते भाटी को पार्टी से निष्काषित कर दिया था। ऐसे में एक बार फिर बिहारीलाल के पत्र के बाद भाटी की घर वापसी की चर्चा तेज हो गई हैं। विधायक बिहारी लाल बिश्नोई, विधायक सुमित गोदरा वसुंधरा राजे के गुट से आते हैं। क्या पत्र के पीछे हैं राजे की भूमिका? ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि भाटी को भाजपा में फिर शामिल करवाने के पीछे राजे की बड़ी भूमिका है। वसुंधरा ऐसा पार्टी में अपनी पैठ को और मजबूत करने के लिए कर रही है। हालांकि कहा जा रहा है कि अभी प्रदेश में वसुंधरा स्वयं संगठन में ज्यादा मजबूत स्थिति में नहीं हैं, ऐसे में बीजेपी विधायक बिहारीलाल बिश्नोई के पत्र को कितना समर्थन मिलेगा, इस अंदाज लगाना मुश्किल है।
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