नई दिल्ली लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा क्या होनी चाहिए, इस बाबत चुनाव आयोग ने मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियां से सुझाव मांगा है। आयोग ने 7 दिसंबर को भेजे एक पत्र में विभिन्न पार्टियों से कहा कि वे भविष्य में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च की सीमा के बारे में अपने “विचार और सुझाव” भेजें। आयोग ने विभिन्न दलों से कहा कि वे व्यय सीमा में संशोधन के लिए अक्टूबर में गठित समिति के नोडल अधिकारी को अपने विचार भेजें। उम्मीदवारों के लिए अपने चुनाव अभियान में खर्च करने की सीमा होती है लेकिन राजनीतिक दलों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती है। समिति को मतदाताओं की संख्या में वृद्धि और खर्च मुद्रास्फीति सूचकांक बढ़ने के मद्देनजर लोकसभा और विधानसभा चुनावों के उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा में संशोधन के विषय पर गौर करने का जिम्मा सौंपा गया है। बता दें कि उम्मीदवारों के लिए खर्चे की सीमा आखिरी बार 2014 में संशोधित की गई थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए यह सीमा 2018 में बढ़ायी गयी थी। चुनाव आयोग ने समिति के गठन की घोषणा करते हुए अक्टूबर में कहा था कि पिछले छह वर्षों में खर्च की सीमा में बृद्धि नहीं की गयी जबकि मतदाताओं की संख्या 83.4 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2019 में 91 करोड़ हो गयी और अब यह 92.1 करोड़ हो गई है। हालांकि इस दौरान खर्च मुद्रास्फीति सूचकांक 220 से बढ़कर 2019 में 280 हो गया और अब यह 301 हो गया है। समिति के अगले साल अपनी रिपोर्ट सौंपने की उम्मीद है। कोरोना वायरस महामारी के बीच चुनाव प्रचार में आने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अक्टूबर में चुनाव आयोग की सिफारिशों के आधार पर मौजूदा व्यय सीमा को 10 प्रतिशत बढ़ा दिया था। दस प्रतिशत की यह वृद्धि बिहार विधानसभा चुनाव और विभिन्न उपचुनावों में लागू थी।
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