हाइलाइट्स:1947 में विभाजन के सांप्रदायिक उन्माद के दौरान पंजाब में मलेरकोटला एकमात्र ऐसा जिला था, जहां कोई हिंसा नहीं हुईलाखों मुसलमानों ने पाकिस्तान में जाने का फैसला किया, वहीं मलेरकोटला के लोगों ने भारत में ही रहने का फैसला कियापेशे से वकील मोबिन फारूकी दो सप्ताह पहले मलेरकोटला से सिंघु बॉर्डर आए थे और यहां लंगर में काम कर रहे हैंनई दिल्ली1947 में विभाजन के सांप्रदायिक उन्माद के दौरान पंजाब में मलेरकोटला एकमात्र ऐसा जिला था, जहां कोई हिंसा नहीं हुई। लाखों पंजाबी मुसलमानों ने नए बने पाकिस्तान में जाने का फैसला किया। मुस्लिम बहुसंख्यक मलेरकोटला के लोगों ने भारत में ही रहने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि गुरु गोविंद सिंह का उनके पूर्वजों को आशीर्वाद है, इसलिए वे यहीं रहेंगे। आज उन परिवारों की नई पीढ़ी सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन कर रही है। यहां पर सिख-मुस्लिम भाईचारा देखने को मिल रहा है।पेशे से वकील मोबिन फारूकी दो सप्ताह पहले मलेरकोटला से सिंघु बॉर्डर आए थे और यहां प्रदर्शन स्थल पर मुसलमानों की ओर से चलाए जा रहे लंगर में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘यह लंगर हमारे सिख भाइयों और बहनों का समर्थन करने का हमारा तरीका है। हालांकि यहां के लोगों की तुलना में हमारा यह प्रयास बहुत छोटा है। हम लोगों को जर्दा और नमकीन चावल खिलाकर खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं।’सिख करते हैं सेवा, मुसलमान करता खिदमतजर्दा पीला मीठा चावल है, जिसे यहां के लोग प्रसाद कहते हैं। मालेरकोटला के एक अन्य निवासी तारिक मंज़ूर ने इसे प्रसाद कहते हुए बताया कि यह व्यंजन हमारे जिले में शादियों और विशेष अवसरों में बनता है। यह विरोध हमारे लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए हमने अपने किसान भाइयों के लिए जर्दा तैयार करते हैं। मंजूर ने कहा कि जिस तरह सिख सेवा जुड़े होते हैं। उसी तरह मुसलमान भी खिदमत की अवधारणा को मानते हैं और अनिवार्य रूप से सभी की मदद करने में आगे रहते हैं।’याद दिला रहे इतिहास’फारूकी, मंज़ूर और मालेरकोटला के 50 स्वयंसेवकों ने इतिहास का वह समय फिर याद दिलाया जब जब गुरु गोविंद सिंह, साहिबजादा फतेह सिंह और साहिबजादा जोरावर सिंह के पुत्रों को सरहिंद के गवर्नर ने प्रताड़ित करने का आदेश दिया गया था, तो मालेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान ने आदेश का विरोध किया और दसवें गुरु को सम्मान, समर्थन देकर उनका आशीर्वाद लिया।’सिखों और मुसलमानों को करना पड़ता है सहन’मंज़ूर ने कहा कि सिखों को भी मुसलमानों की तरह धार्मिक और जातीय पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘हम इस सबसे खुश नहीं हैं क्योंकि हम सभी शांति और मिलजुलकर रहना चाहते हैं। उस समय समुदायों के बीच इतनी दुश्मनी होने पर भी हमारे कोई भी पूर्वज पाकिस्तान नहीं गए।सदियों से चला आ रहा रिश्तालंगर में जर्दा का आनंद ले रहे पंजाब के फतेहगढ़ जिले के एक गांव के सरपंच दलजिंदर सिंह ने कहा कि ये लोग हमारे भाई हैं और मेरे मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है। पंजाब में सदियों से चले आ रहे इस विशेष रिश्ते की यह सच्चाई है। हम एक ही संस्कृति, एक ही साहित्यिक प्रेरणा और एक ही संगीत साझा करते हैं।’मुस्लिम भाइयों के घर में बना गुरुद्वारा पवित्र स्थल’हमारे लिए भाइयों गनी खान और नबी खान के घर पर बना गुरुद्वारा उच दा पीर एक पवित्र स्थल है। गनी और नबी ने हमारे गुरु को बचाया था। सदियों से यह भाईचारा प्रबल रहा है और मालेरकोटला के लोगों ने हमें समर्थन देने के लिए यहां आकर एक बार फिर यह साबित किया है। Kisan Andolan के रंग देखिए: हाइवे किनारे किसान कर रहे खेती, वीडियो कॉल पर पोते के दीदार
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