International bbc-BBC Hindi By BBC News हिन्दी
Updated: Sunday, February 28, 2021, 12:46 [IST]
Altitude Films जमाल ख़ाशोज्जी ऑस्कर विजेता फ़िल्म निर्देशक ब्रायन फ़ोगल का कहना है कि उन्हें भरोसा नहीं है कि सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के मामले में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को कभी भी किसी औपचारिक जाँच का सामना करना होगा अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि क्राउन प्रिंस सलमान ने उस योजना को अपनी सहमति दी थी, जिसके तहत अमेरिका में रह रहे सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी को ज़िंदा पकड़ने या मार डालने का निर्णय लिया गया था। साल 2018 में इस्तांबुल स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास के अंदर ख़ाशोज्जी की हत्या कर दी गई थी. ख़ाशोज्जी इस वाणिज्य दूतावास के अंदर कुछ निजी दस्तावेज़ हासिल करने गये थे. फ़िल्म निर्देशक ब्रायन फ़ोगल ने इस घटना पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म तैयार की है. फ़िल्म का शीर्षक ‘द डिसिडेंट’ है, यानी एक ऐसा शख़्स जो असहमति को व्यक्त करता हो.फ़ोगल की यह फ़िल्म इस बात की पड़ताल करती है कि पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी के साथ क्या हुआ और किसने उनकी हत्या का आदेश दिया होगा. ‘क्राइन प्रिंस पर शायद कभी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा’ हत्या के बाद पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी का शव बरामद नहीं हुआ था और क्राउन प्रिंस सलमान हमेशा ही इस पूरे मामले में शामिल होने से इनकार करते रहे हैं. नवंबर 2019 में पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के मामले में पाँच लोगों को सऊदी अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी और तीन अन्य को जेल की सज़ा हुई थी. लेकिन बाद में मौत की सज़ा को 20 साल जेल की सज़ा में बदल दिया गया. तुर्की की सरकार से मिले सबूतों के आधार पर निर्देशक ब्रायन फ़ोगल ने अपनी फ़िल्म में दिखाया है कि वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार के पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी, जो ख़ुद को अमेरिका में निर्वासित कर चुके थे, पहले उनका दम घोटा गया और फ़िर सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास के अंदर ही उनके शव को क्षत-विक्षत कर दिया गया। फ़िल्म में निर्वासन में रह रहे सऊदी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ ‘स्पाइवेयर’ और ‘फ़ोन हैकिंग’ के इस्तेमाल की भी जाँच की गई है. फ़िल्म में कनाडा के वीडियो ब्लॉगर उमर अब्दुल अज़ीज़ को भी शामिल किया गया है. मौत से पहले पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी वीडियो ब्लॉगर उमर के निकट संपर्क में थे. फ़ोगल कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि क्राउन प्रिंस पर इससे कोई फ़र्क पड़ने वाला है. मुझे नहीं लगता कि इंटरपोल कभी भी उनके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी का वॉरंट जारी करेगा या किसी देश में उनका प्राइवेट जेट उतरने पर उन्हें पकड़ा जायेगा. न ही तुर्की या अमेरिका उन्हें प्रत्यर्पित करेंगे. ऐसा कभी नहीं होने वाला.” फ़ोगल ने कहा, ”ये माहौल मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ है, भले ही मोहम्मद बिन सलमान जैसे अमीर नेताओं को यह लगे कि वे पैसे से कुछ भी ख़रीद सकते हैं और ऐसी घटनाओं के बीच से भी अपना रास्ता बना सकते हैं. ऐसी घटनाओं से तभी बचा जा सकता है, जब सभी देश मिलकर इसके ख़िलाफ़ कोई प्रयास करें.” Reuters क्राउन प्रिंस सलमान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में वाहवाही लेकिन नेटफ़्लिक्स-एमेज़ॉन दूर फ़ोगल का कहना है कि सीआईए की रिपोर्ट के बाद, अगर बाइडन प्रशासन सऊदी अरब से अपने संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करता है तो वो उसका स्वागत करेंगे. इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में सऊदी अरब और अमेरिका के बीच नज़दीकियाँ बहुत तेज़ी से बढ़ी थीं. सीआईए के निदेशक पहले ही कह चुके हैं कि बाइडन निश्चित रूप से डोनाल्ड ट्रंप की ‘प्लेबुक का पालन नहीं करने वाले हैं.’ अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी की ताज़ा रिपोर्ट के बाद यह कहा जा रहा है कि इसका असर किसी न किसी तरह से अमेरिका और सऊदी अरब के संबंधों पर दिखेगा. फ़ोगल के अनुसार, मानवाधिकार कार्यकर्ता लौजैन अल-हथलौल की लगभग तीन साल की हिरासत के बाद हाल में हुई रिहाई ‘स्पष्ट रूप से बाइडन प्रशासन को शांति की पेशकश’ है. फ़ोगल की पिछली खोजी फ़िल्म ‘इकारस’ ने साल 2018 में ऑस्कर जीता था. इस फ़िल्म में फ़ोगल ने खेलों में रूसी सरकार के प्रायोजित ‘डोपिंग घोटाले’ को उजागर किया था. उनकी नई फ़िल्म ‘द डिसिडेंट’ को भी साल 2020 के सनडांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में काफ़ी वाहवाही मिली.इन सबके बीच फ़ोगल इस बात से अचरज में है कि आख़िर नेटफ़्लिक्स और एमेज़ॉन प्राइम जैसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स ने उनकी फ़िल्म के राइट्स नहीं ख़रीदे. वो कहते हैं, “शायद इन कंपनियों में इस कंटेंट को लेकर डर है. भले ही वो यह जानते हैं कि लाखों लोग इस फ़िल्म को देखना चाहेंगे लेकिन वो इसे नहीं दिखाना चाहेंगी क्योंकि इससे उनके व्यवसाय पर असर पड़ सकता है. इससे उनके निवेशक प्रभावित हो सकते हैं.” Altitude Films वीडियो ब्लॉगर उमर अब्दुल अज़ीज़ जेफ़ बेज़ोस पर कई सवाल फ़ोगल दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक और एमेज़ॉन के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस के भी आलोचक हैं. जेफ़ बेज़ोस वॉशिंगटन पोस्ट के मालिक भी हैं, वही अख़बार जिसने पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी को नियुक्त किया था. फ़ोगल के मुताबिक़, ”कि जेफ़ ने ही अपने प्लेटफ़ॉर्म (एमेज़ॉन) पर यह फ़िल्म ना दिखाने का निर्णय लिया. उन्होंने फ़िल्म के राइट्स ना ख़रीदने का फ़ैसला किया.” उन्होंने कहा, ”इसके कुछ महीने बाद ही उन्होंने ‘सऊदी अरब की एमेज़ॉन’ कहे जाने वाली कंपनी सौक का अधिग्रहण किया.” असल में सौक डॉट कॉम को एमेज़ॉन ने साल 2017 में ख़रीदा था, जिसके बाद एमेज़ॉन ने कंपनी का नाम बदल दिया. फ़ोगल कहते हैं, “क्या एमेज़ॉन अभी भी सऊदी अरब के साथ व्यापार कर रहा है? जवाब है हाँ. क्या जेफ़ अपने कर्माचारी की हत्या करने वालों के साथ खड़े हैं? जेफ़ ने कुछ बयान ज़रूरी दिये हैं. लेकिन कोई कार्रवाई होती दिखाई नहीं देती.” फ़ोगल की फ़िल्म में इस्तांबुल स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास के पास 2017 में हुई एक विजिल का वीडियो भी है जिसमें जेफ़ बेज़ोस ने शिरकत की थी और वहाँ उनका भाषण भी हुआ था. Altitude Films अपनी मंगेतर के साथ जमाल ख़ाशोज्जी ‘ख़ाशोज्जी को भयावह ढंग से ख़ामोश कराया गया’ फ़ोगल कहते हैं कि वो इन कंपनियों के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन इस तरह के व्यवहार से ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है. वे उम्मीद करते हैं कि माहौल और परिस्थितियाँ बदलेंगी. फ़ोगल कहते हैं, “मेरी फ़िल्म का मक़सद कोई अभिलेखीय फ़िल्म बनाना नहीं है. यह एक जीवंत थ्रिलर फ़िल्म है जो एक पत्रकार की हत्या और इसके प्रभाव को गहराई से देखती है.” फ़ोगल ने अपनी फ़िल्म के लिए जमाल ख़ाशोज्जी की मंगेतर और तुर्की की वैज्ञानिक हैटिस केंगिज़ का भी इंटरव्यू किया. उन्होंने उनके क़रीबी दोस्त उमर अब्दुल अज़ीज़ का भी इंटरव्यू किया, जिनकी सक्रियता को जमाल ख़ाशोज्जी ने आर्थिक रूप से समर्थन दिया था. फ़ोगल की यह फ़िल्म उस विचार पर आधारित बतायी जाती है कि जमाल ख़ाशोज्जी को एक कार्यकर्ता के रूप में देखा जा सकता है जिनकी पहचान सिर्फ़ एक पत्रकार के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे शख़्स के रूप में थी जो असहमति को खुलकर व्यक्त करता है. अंत में फ़ोगल कहते हैं कि जमाल एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने देश को एक बेहतर जगह बनाना चाहते थे लेकिन उन्हें बहुत भयावह ढंग से ख़ामोश करा दिया गया. 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