नई दिल्लीसुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों की कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र की ओर से कार्य किये जाने में देरी पर बुधवार को सख्त संज्ञान लिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बहुत ही चिंता का विषय है। कोर्ट ने कहा कि आज की तारीख में न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी 189 प्रस्ताव लंबित हैं। साथ ही सरकार को अपने ताजा रुख से अवगत कराने को कहा। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल को इस बात से अवगत कराने को कहा कि हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश पर जवाब देने के लिए कानून मंत्रालय को कितने वक्त की जरूरत होगी। पीठ ने कहा कि यदि आप कॉलेजियम की सिफारिशों पर पांच महीने तक टिप्पणी नहीं करेंगे, तो यह बहुत ही चिंता का विषय है।पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी शामिल हैं। शीर्ष न्यायालय ने टिप्पणी की कि हम लंबित नामों पर 29 जनवरी को अपडेट चाहते हैं और मान लिया जाए कि आपको आपत्ति है और आप नाम वापस भेजते हैं तो हम फिर से उसे दोहरा सकते हैं। लेकिन यदि आप कॉलेजियम की सिफारिशों पर पांच महीने तक टिप्पणी ही नहीं करेंगे, तो यह बहुत ही चिंता का विषय है।पीठ ने कहा कि कुछ मामलों में, केंद्र ने सिफारिशों पर जवाब देने में एक साल से अधिक का समय लगाया और आमतौर पर उनके लंबित रहने के लिए खुफिया ब्यूरो (आईबी) या राज्य सरकारों का जिक्र किया। न्यायालय ने इस विषय की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए निर्धारित करते हुए कहा, ‘‘हमें इसे ठीक करने की जरूरत है। गौरतलब है कि यह टिप्पणी ओडिशा से 2019 में उत्पन्न हुए पीएलआर प्रोजेक्ट प्रा. लि. की एक याचिका के हस्तांतरण पर की गई है। वहां उस वक्त वकीलों ने राज्य के अन्य हिस्सों में उच्च न्यायालय की सर्किट पीठ की मांग करते हुए कई जिलों में हड़ताल कर दी थी। केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से इससे पहले कहा था कि सरकार को उच्चतर न्यायापालिका में न्यायाधीशों की नियुक्त प्रकिया के दौरान उसे भेजी गई सिफारिशों को मंजूरी देने में औसतन 127 दिनों का वक्त लगता है, जबकि उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम को इस सिलसिले में 119 दिनों का वक्त लगता है।
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