नई दिल्लीकिसान आंदोलन का असर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर भी पड़ा है। आंदोलन के बाद जिस तरह से कुछ राज्यों में सियासी हालात बदले हैं उससे पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस की राजनीति प्रभावित हो रही है। हरियाणा में हुड्डा परिवार ने अपना दबदबा बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंंक कर पार्टी में अपनी उपस्थिति मजबूत की है तो पंजाब में कैप्टर अमरिंदर सिंह और मजबूत बन कर उभरे हैं।सूत्रों के अनुसार हरियाणा में किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस को संभावना दिख रही है। वहां किसान आंदोलन के बीच बीजेपी-जेजेपी की अगुआई वाली मनोहर लाल खट्टर की सरकार संघर्ष कर रही है। इसी बीच हुड्डा का ग्राफ पार्टी के अंदर तब बढ़ा जब हाल में मेयर चुनाव में भी पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने इलाके में पार्टी को जीत दिलाई। इसके बाद पार्टी के एक सीनियर नेता ने कहा कि मौजूदा सियासी परिवेश में वह विकल्प नहीं मजबूरी बन गए हैं। साथ ही पूर्व सीएम और कांग्रेस के कद्दावर नेता हुड्डा सीनियर ने नए साल में पार्टी विस्तार की योजना पर काम करने की रणनीति बनाई है जिसे तहत पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में गए नेताओं के अलावा अन्य पार्टियों के दूसरे नेताओं की वापसी की योजना है। इसकी जिम्मेदारी दीपेंद्र हुड्डा को दी गई है। इनके बीच पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने भी संकेत दिया है कि दीपेंद्र हुड्डा राज्य में पार्टी का भविष्य बन सकते हैं और अब और इस मामले में प्रयोग की गुंजाइश नहीं है। हालांकि, इसका औपचारिक ऐलान पार्टी में नए अध्यक्ष के चुनाव के बाद हो सकती है लेकिन तब तक उन्हें खुलकर काम करने की आजादी मिल सकती है।2019 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी हुड्डा परिवार और कांग्रेस के बीच अनबन बढ़ गई थी और पार्टी छोड़ने तक की नौबत आ गयी थी। लेकिन सोनिया गांधी ने अंतिम समय में हस्तक्षेप कर उन्हें मना लिया था और बाद में विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था तो इसका श्रेय हुड्डा को ही दिया गया था। हालांकि पूर्व सीएम हुड्डा भी उन 23 सीनियर नेताओं में शामिल थे जिन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। लेकिन पार्टी नेताओं के अनुसार इस मामले को आपसी बातचीत से सुलझा लिया गया है। दूसरी तरफ पंजाब में भी अमरिंदर सिंह की स्थिति कांग्रेस के अंदर मजबूत हुई है। पिछले दिनों प्रताप सिंह बाजवा के नेतृत्व में अमरिंदर पर निशाना साधा गया था लेकिन उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को साथ लेकर इस पहल को कमजोर कर दिया। साथ ही हाल के समय में गांधी परिवार के करीबी नेताओं में अमरिंदर सिंह भी शुमार हो चुके हैं।
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