हाइलाइट्स:टनल की इंजीनियरिंग भी हो रही है बेहतरसुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पाकिस्तान सुरक्षा एजेंसियों की इंजीनियरिंग टीम दे रही है टेक्निकल सपोर्टपहले पंजाब के जरिए होती थी घुसपैठ की कोशिश पर अब पूरा फोकस जम्मू परनई दिल्लीपाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए हर तरीके आजमा रहा है। एलओसी से जहां लगातार घुसपैठ की कोशिश हो रही है वहीं पाकिस्तान इंटरनेशनल बॉर्डर से आतंकियों को भारत भेजने की कोशिश में अब टनल पर ज्यादा फोकस कर रहा है। पिछले कुछ सालों में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कई टनल पकड़ी हैं। आतंकियों को पूरा फोकस जम्मूपहले जहां टनल के जरिए घुसपैठ या आतंकियों तक हथियार भेजने की कोशिश पंजाब से होती थी वहीं पिछले कुछ सालों में पूरा फोकस अब जम्मू हो गया है। पंजाब में सुरक्षा एजेंसियों को आखिरी टनल जनवरी 2003 में मिली थी। तब 50 मीटर लंबी टनल मिली जिसके जरिए आतंकी घुसकर अपने मंसूबों को अंजाम देने की फिराक में थे। इससे पहले 2001 में 90 मीटर लंबी, 1999 में 170 मीटर लंबी, 1998 में 45 मीटर लंबी और 1997 में 35 मीटर लंबी टनल मिली थी।आतंकियों की टनल मिलीं जम्मू में इंटरनैशनल बॉर्डर के पास पहली टनल 2012 में सांभा में मिली थी। यह टनल करीब 55 मीटर लंबी भारत की तरफ थी और माना जा रहा था कि पाकिस्तान की तरफ यह 200 मीटर लंबी रही होगी। इसके बाद साल 2016 में दो टनल मिली। जिसमें एक 40 मीटर लंबी थी और एक 33.5 मीटर लंबी। 2017 में भी दो टनल मिली जिसमें एक टनल ऐसी पाई गई जिसका एग्जिट पॉइंट आतंकी तब तक तैयार नहीं कर पाए थे। पिछले साल यानी 2020 में भी दो टनल मिली। इसी साल 13 जनवरी को भी जम्मू में 150 मीटर लंबी टनल मिली। आतंकी बना रहे इस तरह की टनलसुरक्षा एजेंसी के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक अब जिस तरह की टनल मिल रही हैं उसमें इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि टनल के अंदर ऑक्सीजन मिलती रहे और विंड पॉइंट बनाए गए थे। साथ ही टनल के ओपनिंग पॉइंट पर स्टेप्स भी मिले जिससे बाहर निकलने में आसानी हो। उन्होंने कहा कि सामान्य लोग इस तरह की टनल नहीं बना सकते। आतंकियों को पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों का सपोर्ट पहले से ही मिल रहा है और अब लग रहा है कि उन्हें ज्यादा टेक्निकल सपोर्ट मिलने लगा है और इसमें पाकिस्तान ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है।इस तरीके से टनल का पता चलता हैएक सीनियर अधिकारी ने कहा कि टनल का पता तीन तरीके से लगाया जा सकता है। एक सेटेलाइट इमेजरी के एनालिसिस के जरिए, दूसरा फिजिकल पट्रोलिंग के जरिए और तीसरा सिसमिक सेंसर के जरिए। उन्होंने कहा कि सिसमिक सेंसर पूरे बॉर्डर पर लगाना मुमकिन नहीं है। सेटेलाइट इमेजरी के जरिेए भी टनल का पता तब लग पाता है जब जहां पर खुदाई हो रही है वहां पर मिट्टी इक्ट्ठा दिखे या दूसरे कोई निशान। लेकिन आतंकी अब इसका भी ख्याल रख रहे हैं कि वह सेटेलाइट इमेजरी से पकड़ में न आएं। इसलिए फिजिकल पट्रोलिंग लगातार की जा रही है ताकि आतंकियों को कोई मौका ना मिल सके।
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